विस्थापन का महिलाओं के जीवन पर प्रभाव (छ.ग. राज्य के नई राजधानी परियोजना के विषेष संदर्भ में )
डाॅ. चांदनी मरकाम
1स्व. ल. अ. स्मृ. चिकि. महा., रायगढ़ छ.ग.
1समाजषास्त्र एवं समाजकार्य अध्ययनषाला, पं.रविषंकर शुक्ल विष्वविद्यालय, रायपुर छ.ग.
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विकास, विस्थापन एवं जनांकिकीय प्रक्रियाएं: नगरीय विस्थापित परिवारों का एक समाजषास्त्रीय अध्ययन विषय के अंतर्गत यह शोध किया गया है। इसमें नगरीय विकास की वृहद् परियोजनाओं से बढ़ते विस्थापन को दर्षाया गया है। नगरों के विकास एवं विस्तार से नगरों में भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया में वृध्दि हुई है। भूमि अधिग्रहण करने के लिए विभिन्न एजेन्सियां कार्य करती है। इनके द्वारा नगरीय लोगों की भूमि अधिग्रहित की जाती है एवं लोगों को विस्थापित किया जाता है।
ज्ञम्ल्ॅव्त्क्ैरू विकास, विस्थापन, रोजगार, बेरोजगारी, विस्थापन, पुनर्वास, महिलाओं की स्थिति, षिक्षा, व्यवसाय, आंतरिक संबंध
प्रस्तावना:-
विकास, विस्थापन एवं जनांकिकीय प्रक्रियाएंः नगरीय विस्थापित परिवारों का एक समाजषास्त्रीय अध्ययन विषय के अंतर्गत यह शोध किया गया है। इसमें नगरीय विकास की वृहद् परियोजनाओं से बढ़ते विस्थापन को दर्षाया गया है। नगरों के विकास एवं विस्तार से नगरों में भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया में वृध्दि हुई है। भूमि अधिग्रहण करने के लिए विभिन्न एजेन्सियां कार्य करती है। इनके द्वारा नगरीय लोगों की भूमि अधिग्रहित की जाती है एवं लोगों को विस्थापित किया जाता है।
यह शोध प्रबंध छत्तीसगढ़ राज्य में नई राजधानी परियोजना जिसे अटल नगर के नाम से जाना जाता है के निर्माण में हुए ग्रामों के विस्थापन पर आधारित है। यहां पर विस्थापन तथा पुनर्वास होने से महिलाअेां के जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन किया गया है।
विकास एवं विस्थापन:-
वर्तमान में अर्थव्यवस्था आधारित विकास ने विस्थापन को स्वाभाविक मानते हुए इसकी अनदेखी ही की है, परंतु विस्थापन एक बहुआयामी अवधारणा है, जिसका संबंध केवल सामाजिक परिवर्तन से नहीं है, वरन् यह समुदायों की गूणवत्ता को भी काफी न्यून स्तर पर ले आता है, जिससे अलगाव तथा सामाजिक आर्थिक एवं सांस्कृतिक विस्थापन भी हो जाता है। नर्मदा, टिहरी, हर्सूत (मध्यप्रदेष), टिहरी (उत्तराखण्ड), जैसी वृहद् बांध परियोजनाओं में जो विस्थापन किया गया है, उसमें वास्तव में एक मानवीय समस्या उत्पन्न कर दी है। यह आर्थिक और मुआवजा क्षतिपूर्ति की समस्या से कहीं अधिक दूरगामी और विकराल है।1
अध्ययन का समाजषास्त्रीय महत्व:-
छ.ग. राज्य पुनर्गठन के पष्चात् राज्य में पहली बार प्रषासनिक ज़रूरतों को ध्यान मे रखते हुए पृथक रूप से नई राजधानी क्षेत्र विकसित करने का निर्णय लिया गया। इस निर्णय के तहत् जिस स्थान पर नया राजधानी क्षेत्र विस्तृृत करने का निर्णय हुआ है, उससे कुल 41 गांव प्रभावित हुए हैं, जिनमें 27 गांव को राज्यषासन ने वास्तविक प्रभावित गांव की सूची मे रखा है। प्रस्तुत अध्ययन समाजषास्त्रीय संदर्भ में विस्थापन के फलस्वरूप इन समुदायों पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन किया गया है, जिससे कुछ नये तथ्य समाजषास्त्रीय संदर्भ में ज्ञात हुए हैं जो कि अध्ययन की प्रासंगिकता को बढ़ाता है।
उद्देष्य:-
1.
विस्थापन एवं पुनर्वास से उत्पन्न समस्या को ज्ञात करना।
2.
महिलाओं में विस्थापन के प्रभाव का ज्ञात करना।
उत्तरदाताओं का चयन:-
नई राजधानी परियोजना कार्य में 41 गांवो को जोड़ा गया हैं जिनमें से 27 गांव ही ऐसे है जो नया रायपुर के भीतर आते हैं तथा इनमें 10 गांव की पूरी जनसंख्या को विस्थापित किया गया है। इसके अतिरिक्त भी कुछ गांव का विस्थापन किया गया है, जबकि अधिकांष प्रभावित गांव की कृषि भूमि लेकर उन्हें मुआवजा दिया गया है लेकिन गांव का विस्थापन नही हुआ हैै, प्रस्तुत अध्ययन हेतु परियोजना से पूर्णतः प्रभावित ग्राम राखी के 47 परिवार में से दैव निदर्षन लाॅटरी प्रणाली विधि से 21 महिलाओं का अध्ययन किया गया है।
उत्तरदाताओं की षिक्षा:-
मानव जीवन का मुख्य आधार षिक्षा है, सभी कालों में षिक्षा अत्यंत उपयोगी ही है। मानव अपनी उन्नति के लिए सृष्टि के प्रारंभ से ही प्रयत्नषील है उसे पूर्ण मानसिक शांति षिक्षा के द्वारा ही प्राप्त हुई। उन्हांेने इस बात का अनुभव किया कि षिक्षा के बिना मानव जीवन पषु तुल्य है तथा षिक्षा का उद्देष्य व्यक्ति के व्यक्तित्व का सर्वांगिण विकास होता हैं।
उपर्युक्त तालिका से स्पष्ट होता है कि ग्राम राखी की सर्वाधिक महिलाएं 47.7 प्रतिषत निरक्षर हैं, 28़.6 प्रतिषत महिलाओं ने मात्र प्राथमिक तक की षिक्षा प्राप्त की है, 14.3 प्रतिषत महिलाओं ने मिडिल की षिक्षा प्राप्त की है तथा 4.7 ने हाई स्कूल एवं 4.7 ने हायर सेकण्डरी तक की षिक्षा प्राप्त की है।
अतः उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि ग्राम राखी की महिलाअेां का निरक्षर होना ही उनके विकास की सबसे बड़ी बाधक हैं।
परिवार के महिलाओं की व्यवसाय में संलग्नता की स्थिति:-
विस्थापन के कारण विस्थापित व्यक्तियों की दरिद्रता में वृध्दि होती है, वे अपनी जमीन-जायदाद खो देते हैं महिलाएं भी अपना व्यवसाय खो देती हैं। विस्थापन से जनजातीय क्षेत्रों में महिलाओं की दरिद्रता में वृध्दि हो जाती है, वे विस्थापन के पष्चात् पूर्ण रूप से पुरूष पर निर्भर हो जाती है, कृषि करने की गतिविधियां समाप्त हो जाती है । आत्मनिर्भरता की समाप्ति से समस्याओं व असमानता में वृध्दि हो जाती है स्त्री-पुरूष विषमता में वृध्दि होती है।2
जब किसी ग्राम का विस्थापन किया जाता है तो सर्वाधिक समस्याओं का सामना परिवार की महिलाओं को करना पड़ता है, अपने शोध अध्ययन में मैंने यह पाया कि विस्थापन से पूर्व जहां 85.7 प्रतिषत परिवार की महिलाएं व्यवसाय में संलग्न थी वहीं विस्थापन के पष्चात् 66.7 प्रतिषत ही महिलाएं व्यवसाय में संलग्न हैं। जिसका मुख्य कारण महिलाओं के लिये रोजगार के अवसर में कमी पाया गया है, जो महिलाएं विस्थापन से पूर्व अपने कृषि भूमि में कृषि कार्य करके या कहीं और गैर कृषि व्यवसाय का कार्य करके रोजगार में संलग्न रहती थी उन्हें विस्थापन पष्चात् कृषि भूमि के छीन जाने के कारण रोजगार में महिलाओं की भागीदारी में कमी आई है।
उत्तरदाताओं का व्यवसाय:-
व्यक्ति द्वारा जीवकोपार्जन एवं विभिन्न प्रकार के जीवन के आवष्यकताओं की पूर्ति करने हेतु मुद्रा की आवष्यकता होती है जिसे अर्जित करने के लिये व्यवसाय किया जाता है। मानव जीवन में व्यवसाय अत्यंत ही महत्वपूर्ण है क्योंकि व्यवसाय के आधार पर ही व्यक्ति की भूमिका निर्धारित होती है । बिना व्यवसाय के व्यक्ति का समाज में कोई अस्तित्व नहीं होता है, व्यक्ति का संपूर्ण जीवन व्यवसाय से जुडा हुआ होता है क्योंकि सामाजिक स्थिति का निर्धारण करने में व्यवसाय महत्वपूर्ण होता है, आजकल के जीवनषैली मे व्यक्ति के सामने सबसे बडी समस्या के रूप में व्यवसाय ही सामने आता है प्रत्येक व्यक्ति को सर्वप्रथम अपने व्यवसाय का ही निर्धारण करना होता है जिससे वह अपनी जिंदगी की आवष्यकताओं को पूरा कर सके।
‘‘राजू सिंह ने (2016) में विस्थापन के प्रभाव पर शोध किया जिसमें यह पाया कि विस्थापन से व्यवसाय बहुत प्रभावित होता हैै। विस्थापन से पहले व्यक्ति कृषि का व्यवसाय व पषुपालन, दूध डेयरी का व्यवसाय करता है। उसका यह व्यवसाय प्रभावित होता है तथा विस्थापन के बाद उसे मजदूरी करनी पड़ती है, क्योंकि विस्थापन से कृषि की भूमि अधिगृहित हो जाती है। सिंचित भूमि अधिगृहित कर ली जाती है। फसलों का उत्पादन, साग-सब्जियों का उत्पादन, पषुपालन प्रभावित होता है। अनाज खरीद करके लाना पड़ता है। विस्थापन से कृषि के स्थान पर मजदूरी करनी पडती है। औरतें जो कृषि कार्य करती हैं वे भी विस्थापन के बाद मजदूरी करने लगती हैं। उनके रहने के स्थान और कार्य करने के स्थान के बीच की दूरी में वृध्दि हो जाती है। कई बार रोजगार नहीं मिलता है, जिससे वे वापस आ जाते हैं। किराया देना भी कठिन होता है। विस्थापन से मूल व्यवसाय छूटने से कार्य स्थल और आवास के बीच दूरी में वृध्दि हो जाती है। इसमें सर्वाधिक हानि स्त्रियों व बच्चों को होती है। स्त्रियों को भी मजदूरी अधिक करनी पडती है।‘‘ 3
तालिका क्रमांक 3 में उत्तरदाताओं के वर्तमान के व्यवसाय की स्थिति को ज्ञात करने का प्रयास किया गया है जिसमें यह पाया गया कि सर्वाधिक महिलाएं 33.3 प्रतिषत बेरोजगारी का जीवन व्यतीत कर रही हैं, 23.9 प्रतिषत महिलाएं वर्तमान में मजदूरी का कार्य कर रही हैं, 19.1 प्रतिषत महिलाएं रेजा कार्य करने पर मजबूर हैं, क्रमषः 9.5 प्रतिषत महिलाएं कृषि कार्य करती हैं, 9.5 प्रतिषत महिलाएं पषुपालन का कार्य रही है तथा 4.8 प्रतिषत महिलाएं दुकान चलाकर अपना जीवन यापन कर रही हैं।
उपर्युक्त आंकडें इस बात की पुष्टि करता है कि एक बहुत बड़ा भाग 33.3 प्रतिषत बेरोजगारी का जीवन व्यतीत कर रहा है।
उत्तरदाताओं की मासिक आय:-
मनुष्य की आवष्यकता अनंत है, और व्यक्ति उन आवष्यकताओं की पूर्ति हेतु किसी प्रकार का कार्य व श्रम करता है जिसके बदले में जो राषि प्राप्त होती है वही उसका आय कहलाता है, वही नहीं संपत्ति के बदले में ब्याज की जो राषि प्राप्त होती है, यह आप मासिक और वार्षिक सप्ताहिक किसी भी प्रकार का हो सकता है, व्यक्ति की आर्थिक स्थिति आय द्वारा निर्धारित होती है।
प्रति व्यक्ति आय केा, आर्थिक विकास को परिभाषित करने के लिये सबसे महत्वपूर्ण समझा जाता है, इस दृष्टिकोण के समर्थकों में आर्थर, लुईस, हिगिन्स, विलियम सन एवं बेकन के नाम प्रमुखता से लिये जाते हैं।
उपर्युक्त तालिका से विदित होता है कि सर्वाधिक 52.4 प्रतिषत उत्तरदाताओं की मासिक आय 3000 रू. तक की है, 23.8 प्रतिषत उत्तरदाता 5000 रू. तक की मासिक आय अर्जित कर पाते हैं, 19 प्रतिषत उत्तरदाता 7000 रू. तक की मासिक आय है तथा केवल 4.8 प्रतिषत उत्तरदाताओं की मासिक आय लगभग 10000 रूपये तक की है।
अतिरिक्त व्यवसाय की आवष्यकता का होना:- उत्तरदाताओं को अपने मुख्य व्यवसाय के अतिरिक्त, जीवन यापन करने के लिये अन्य व्यवसाय करने की आवष्यकता विस्थापन के पूर्व तथा पष्चात् में है या नहीं इस संदर्भ में किया गया अध्ययन निम्न तालिका में प्रस्तुत है-
उत्तरदाताओं के वर्तमान में कार्यरत् व्यवसाय से परिवार की आवष्यकताओं की पूर्ति न होने की स्थिति में अतिरिक्त व्यवसाय करने की आवष्यकता विस्थापन से पूर्व 95.2 प्रतिषत महिलाओं को नही पड़ती थी, परंतु विस्थापन के पष्चात् 80.9 प्रतिषत महिलाअेां को अतिरिक्त व्यवसाय करने की आवष्यकता पड़ती है।
जो कि इस बात को सिध्द करती है कि उनकी आर्थिक स्थिति विस्थापन पष्चात् अच्छी नहीं है।
दैनिक जीवन में समस्याएं:-
गांगुली ठकुराल तथा सिंह (1995)ः- ‘‘ ने अपने अध्ययन में यह पाया है कि विस्थापन से सर्वाधिक महिलाएं प्रभावित होती हैं अभाव के होने वाले दुष्प्रभाव का आकलन करना बेहद मुष्किल है । इससे सभी प्रभावित हुए है लेकिन हर समूह में महिलाओ ने विकास की सबसे ज्यादा कीमत चुकाई है। जो सारा ध्यान केवल पुरूषों पर ही दिया जाता है, महिलाओं की पूरी तरह से उपेक्षा होती है। उदाहरण के तौर पर नौकरी हमेषा परिवार के मुखिया को दी जाती है। अधिकांष परिवारेां में पुरूष ही मुखिया होते हैं।‘‘4
मैंने अपने अध्ययन में यह पाया कि 57.6 प्रतिषत महिलाओं को अपने दैनिक जीवन के यापन में अनेक प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, जैसे कि दैनिक जीवन में उपयोग में लाने वाली वस्तुओं की उपलब्धता में कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है, पुनर्वास स्थान में समायोजन करने में समस्या, पुनर्वासित स्थान में पड़ोसियों के साथ संबंध स्थापित करने में समस्या, शासन से प्राप्त आवास में परिवार का निर्वाह करने में समस्या, बच्चों की असुरक्षा, चोरी, लुटपाट अन्य प्रकार के भय का बने रहना।
इसके अतिरिक्त 88.5 प्रतिषत महिलाओं का मानना है कि पुरूषों की तुलना में उनके जीवन पर विस्थापन का अधिक प्रभाव पड़ा है।
अंतर्पारिवारिक संबंधों पर प्रभावः-
विस्थापन का प्रभाव लोगों के जीवन के सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक सभी क्षेत्रों पर पड़ा है, परिवार के वृध्दों केा अपने जन्म भूमि की मिट्टी से जो लगाव था उससे उन्हें जबरदस्ती हटा कर वृध्दावस्था में समायोजन करने की समस्या का सामना करना पड़ा, विस्थापित परिवार की महिलाएं जिस गांव में उनका जन्म हुआ, जहां वह विवाह पष्चात् आयी, जिस ग्राम में उनका मायका तथा ससुराल रहा उन्हें विस्थापन के फलस्वरूप अपने ग्राम से जबरदस्ती हटा दिया गया जिस परिवर्तन के साथ उन्हें समायोजन करने में बहुत कठिनाईयों का सामना करना पड़ा। महिलाएं विस्थापन से पूर्व अपने कार्यक्षेत्र में निष्चिन्त होकर जाया करती थी वहीं आज विस्थापन के पष्चात् नया वातावरण है, नये पड़ोसी है जिसमें उन्हें कहीं जाने के लिये मन में बच्चों की असुरक्षा का भय प्रत्येक क्षण बना रहता है। वह स्वयं को तथा अपने परिवार को सुरक्षित महसूस नही कर पा रही है।
विस्थापन का प्रभाव लोगों के जीवन में उनके परिवार, सामाजिक संबंधों के साथ साथ अंतर्पारिवारिक संबंधों पर भी पड़ा है, जिसे निम्न तालिका में दर्षाया गया है।
विस्थापन का प्रभाव लेागों के जीवन के प्रत्येक पहलु पर पड़ा है जिनमें परिवार का विघटन, पारिवारिक कलह, सामाजिक संबंधों पर प्रभाव तथा अंतर्पारिवारिक संबंधों पर प्रभाव प्रमुख है 76.2 प्रतिषत उत्तरदाताओं के पारिवारिक ंसंबंधों पर विस्थापन का प्रभाव हुआ है तथा केवल 23.8 प्रतिषत उत्तरदाताओं के अनुसार उनके पारिवारिक संबंधों पर प्रभाव नहीं पड़ा है।
निष्कर्ष:-
प्राप्त तथ्यों के आधार पर ग्राम राखी में विस्थापन का महिलओं के जीवन में अत्यधिक प्रभाव पड़ा है ग्राम राखी की सर्वाधिक महिलाएं 47.7 प्रतिषत निरक्षर होने के कारण अपने विकास हेतु स्वयं कुछ कार्य करने में असक्षम पायी गयी हैं। विस्थापन से पूर्व केवल 14.3 प्रतिषत महिलाएं व्यवसाय में संलग्न नहीं थी, वहीं विस्थापन के पष्चात् इसेमें बढ़ोत्तरी हुई हें अब विस्थापन के पष्चात् 33.3 प्रतिषत महिलाओं के पास स्वयं का कोई व्यवसाय नहीं है। जहां विस्थापन से पूर्व सर्वाधिक महिलाएं कृषि कार्य में संलग्न थी वह अब विस्थापन के पष्चात् मजदूरी, रेजा, जैसे कार्य को करने के लिये मजबूर हैं जिससे उनके मासिक आय में काफी बड़ा परिवर्तन आया है, अपने परिवार की आजीविका बेहतर ढ़ंग से चलाने के लिये अतिरिक्त व्यवसाय करने हेतु मजबुर हैं।
विस्थापन के पष्चात् उत्तरदाताओं के अंतर्पारिवारिक संबंधों में भी बहुत बड़ा परिवर्तन आया है, लागों के परिवारिक कलह में वृध्दि हुई है, परिवार के वृध्दों एवं बच्चेंा मंे समायोजन की समस्या को लेकर असंतोष पाया गया है, घर के पुरूष तथा बच्चेंा में नषे , मार पीट तथा अन्य प्रकार की बुराईयों , बेरोजगारी में वृध्दि हुई हैं।
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1- Singh, Raju (2016): Development, Displacement and Rehabilitation. Rawat Publication, New Delhi, p.16-28.
2- Mathur, Hari Mohan and Marsden. (1998). Development projects and Impoverishment Risks, Resetting Project- Affected People in India. Oxford University Press p-110.
3- Singh Raju (2016): Development, Displacement and Rehabilitation. Rawat Publication, New Delhi, p.57.
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Received on 19.02.2019 Modified on 28.02.2019
Accepted on 10.03.2019 © A&V Publications All right reserved
Int. J. Rev. and Res. Social Sci. 2019; 7(1):188-192.